Friday, September 28, 2018

र सैलानी आजाद, चौपर से एयरलिफ्ट कर कुल्लू पहुंचाए

की मार से लाहुल घाटी में कैद 36 और सैलानी शुक्रवार को आजाद हो गए। प्रशासन के रेस्क्यू आपरेशन के चौथे दिन हेलिकाप्टर के जरिए इन सैलानियों को एयरलिफ्ट किया गया। पौ फटते ही वायु सेना के हेलीकाप्टर ने पहली उड़ान छतडू, छोटा दड़ा के लिए भरी और दूसरी उड़ान आर्मी कैंप के लिए भरी गई। दोनों उड़ानों में 36 पर्यटकों को सुरक्षित निकाल लिया गया। ये सैलानी महाराष्ट्र दिल्ली और मुंबई के हैं। सभी पर्यटकों को ढालपुर मैदान में पहुंचाया गया । सभी का प्राथमिक उपचार क्षेत्रीय अस्पताल में चल रहा है। एसी-टू-डीसी सन्नी शर्मा ने बताया कि पिछले चार दिनों से चले रेस्क्यू आपरेशन में वायु सेना के हेलीकॉप्टर के माध्यम से अब तक 146 सैलानियों को रेस्क्यू किया जा चुका है। अब भी 25 पर्यटक फंसे हुए हैं।कोर्ट ने शुक्रवार को फिर ऐतिहासिक फैसला सुनाया. केरल के सबरीमाला मंदिर में लगी महिलाओं की एंट्री पर रोक को सर्वोच्च अदालत ने हटा दिया है. केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री पर लगी रोक अब खत्म हो गई है. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया. पांच जजों की बेंच ने 4-1 (पक्ष-विपक्ष) के हिसाब से महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया. करीब 800 साल पुराने इस मंदिर में ये मान्यता पिछले काफी समय से चल रही थी कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश ना करने दिया जाए. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस नरीमन, जस्टिस खानविलकर ने महिलाओं के पक्ष में एक मत से फैसला सुनाया. जबकि जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने सबरीमाला मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया. फैसला पढ़ते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि आस्था के नाम पर लिंगभेद नहीं किया जा सकता है. कानून और समाज का काम सभी को बराबरी से देखने का है. महिलाओं के लिए दोहरा मापदंड उनके सम्मान को कम करता है. चीफ जस्टिस ने कहा कि भगवान अयप्पा के भक्तों को अलग-अलग धर्मों में नहीं बांट सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 25 के मुताबिक सभी बराबर हैं. समाज में बदलाव दिखना जरूरी है, व्यक्तित्व गरिमा अलग चीज है. पहले महिलाओं पर पाबंदी उनको कमजोर मानकर लगाई गई थी. जस्टिस नरीमन ने अपना फैसला पढ़ते हुए कहा कि महिलाओं को किसी भी स्तर से कमतर आंकना संविधान का उल्लंघन करना ही है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सबरीमाला मंदिर की ओर से याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि वह इस पर रिव्यू पेटिशेन दायर करेंगे.आस्ट्रेलिया के डी आर्की शार्ट लिस्ट ए क्रिकेट में सर्वाधिक व्यक्तिगत स्कोर बनाने वाले तीसरे बल्लेबाज़ बन गये हैं और इस मामले में उन्होंने भारत के सलामी बल्लेबाज़ शिखर धवन को पीछे छोड़ दिया है। शार्ट ने 148 गेंदों में रिकार्ड 23 छक्कों की मदद से 257 रन बनाये और 11 रनों के अंतर से वह लिस्ट ए क्रिकेट में सर्वाधिक व्यक्तिगत स्कोर बनाने का रिकार्ड अपने नाम करने से मात्र 11 रन ही पीछे रहे। किसी आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी का एकदिवसीय प्रारूप में भी यह सर्वाधिक स्कोर है। उन्होंने अपनी इस पारी से जेएलटी वनडे कप में क्वींसलैंड के खिलाफ यह पारी खेली और अपनी टीम वेस्टर्न आस्ट्रेलिया को 116 रन से जीत दिला दी। शार्ट ने इसी के साथ लिस्ट ए में सर्वाधिक व्यक्तिगत स्कोर के मामले में भारतीय बल्लेबाज़ धवन को पछाड़ दिया है जिनके 248 रन हैं। धवन इसी के साथ सूची में खिसककर चौथे नंबर पर आ गये हैं जबकि भारत के ही रोहित शर्मा 264 रनों के साथ दूसरे नंबर पर जबकि अली ब्राउन 268 रनों के साथ शीर्ष स्थान पर हैं। वेस्टर्न आस्ट्रेलिया की पारी में तीसरे नंबर पर उतरे शार्ट के अलावा अन्य कोई बल्लेबाज़ 30 रन के पार नहीं जा सका। उन्होंने 148 गेंदों की पारी में 15 चौके और 23 छक्के लगाते हुये 257 रन ठोक डाले और आठवें बल्लेबाज़ के रूप में आउट हुये। शार्ट ने कमाल की बल्लेबाज़ी की और अपने 100, 150, 200 और 250 रन छक्के जड़ने के साथ पूरे किये। उनकी यह पारी आस्ट्रेलिया की तरफ से चौथा 200 के पार का स्कोर है।

Friday, September 14, 2018

दिल छू लेगी नए जमाने के 'लैला-मजनू' की कहानी

जब वी मेट', 'लव आज कल', 'रॉकस्टार' और 'तमाशा' जैसी फिल्में बनाने वाले फिल्ममेकर इम्तियाज अली की नई फिल्म लैला मजनू कहानी कश्मीर की खूबसूरत वादियों से शुरू होती है। अली की लैला (तृप्ति डिमरी) एक दिलचस्प किरदार है। वो अपनी खूबसूरती के बारे में जानती है और लड़कों से मिलने वाले अटेंशन को एन्जॉय भी करती है। जब कैस (अविनाश तिवारी) लैला से मिलता है तो दोनों अपने आप ही एक-दूसरे की तरफ खिंचे चले जाते हैं। कैस के बारे में कहा जाता है कि वो शराबी और लड़कीबाज है। कैस के बारे में ऐसी बातें पता चलने पर लैला का इंटरेस्ट बढ़ जाता है। फ्लर्ट से शुरू हुई बातचीत गहरे प्यार में बदल जाती है। कैस, लैला के लिए जुनूनी हो जाता है और यही से उसकी बर्बादी की शुरुआत होती है। लैला के पिता (परमीत सेठी) एक पावरफुल आदमी है। उनका कैस के पिता (बेंजामिन गिलानी) से प्रॉपर्टी को लेकर झगड़ा चल रहा है, इसलिए दोनों फैमिलीज लैला-मजनू के प्यार को एक्सेप्ट नहीं करतीं। कैस देश छोड़कर चला जाता है। चार साल बाद वो वापस आता है लेकिन अब वो पागलपन की कगार पर पहुंच चुका है।
अगर बात करे एक्टिंग की तो फिल्म का हीरो कैस (अविनाश) फिल्म की ताकत है। तृप्ति खूबसूरत हैं और उन्होंने अपने किरदार को बखूबी निभाया है लेकिन फिल्म की जान अविनाश तिवारी ही हैं। इम्तियाज अली ने कैस के किरदार पर ही फोकस किया है और उनके पागलपन को दिखाया है। तिवारी ने इस किरदार को बेहतरीन तरीके से निभाया है। ऐसा कह सकते हैं कि वे एक शानदार अभिनेता हैं। साजिद ने 2 घंटे 15 मिनट की इस फिल्म को कहीं भी भटकने नहीं दिया। आखिर में इमोशन को दिखाते हुए ऐसा लगता है कि उन्होंने अपना कंट्रोल खोया है। फिल्म कहीं-कहीं सूरज बड़जात्या की 'मैंने प्यार किया' को ट्रिब्यूट देती दिखाई देती है।मांटिक फिल्मों के एक्सपर्ट बन चुके इम्तियाज अली के भाई साजिद अली ने इस फिल्म को डायरेक्ट किया है। साजिद ने इस फिल्म के साथ पूरा न्याय किया है। साहसी लैला और दीवाने मजनू के कैरेक्टर को शानदार तरीके से गढ़ा गया है। शशांक भट्टाचार्य ने बेहतरीन सिनेमेटोग्राफी कर कश्मीर की खूबसूरती को दिखाया है जिसने इस लव स्टोरी को रियल बनाने का काम किया है। साजिद ने बिना किसी इंटीमेट सीन के प्यार की गहराई को दिखाया है। आज के समय में जब लव स्टोरीज बहुत फास्ट दिखाई जाती हैं, लैला मजनू की कहानी धीरे-धीरे गहराई में उतरती है। जिसमें दो प्रेमियों का पागलपन दिखता है।
फिल्म का एक और प्लस प्वाइंट है इसका म्यूजिक। फिल्म में 10 गाने हैं लेकिन लगता है कि और होने चाहिए थे। म्यूजिक कंपोज निलादरी कुमार और जॉई बरुआ ने किया है। यह इस साल का बेस्ट म्यूजिक पीस हो सकता है। 
कुलमिलाकर अगर आप बॉलीवुड की घिसी-पिटी रोमांटिक फिल्मों से बोर हो चुके हैं और प्यार की इमोशनल और गहरी लव स्टोरी देखना चाहते हैं तो ये फिल्म जरूर देख सकते हैं।
गोलमाल सिरीज की पिछली किस्त ‘गोलमाल अगेन’ की शानदार सफलता ने बॉलीवुड में हॉरर-कॉमेडी विधा के लिए संभावनाओं के नए दरवाजे खोले हैं। ‘स्त्री’ भी इसी शैली की फिल्म है। हालांकि इसे सिर्फ इसी खांचे में रख कर देखना इसके साथ पूरा न्याय नहीं होगा। दरअसल यह फिल्म केवल डर और हंसी ही नहीं परोसती, कुछ कहने का प्रयास भी करती है।
फिल्म की कहानी घटती है मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक शहर चंदेरी में। चंदेरी अपनी सिल्क और कॉटन की हस्तनिर्मित साड़ियों के लिए मशहूर रहा है, लेकिन फिल्म की कहानी का उससे कोई लेना-देना नहीं है। हां, कपड़े से फिल्म के तार जरूर जुड़े हैं। चंदेरी में तीन दोस्त रहते हैं- विकी (राजकुमार राव), बिट्टू (अपारशक्ति खुराना) और जना (अभिषेक बनर्जी)। विकी बहुत अच्छा टेलर है और अपने पिता (अतुल श्रीवास्तव) के साथ मिल कर सिलाई की दुकान चलाता है। बिट्टू की रेडिमेड कपड़े की दुकान है और जना क्या करता है, पता नहीं। विकी टेलरिंग का काम बहुत बेहतरीन करता है। आसपास के इलाके में उस जैसा शानदार टेलर कोई नहीं है। उसके पिता उसे दुकान पर ध्यान देने के लिए कहते हैं, लेकिन वह कुछ बड़ा करना चाहता है। एक दिन उसकी मुलाकात एक लड़की (श्रद्धा कपूर) से होती है, जो उसे एक लहंगा सिलने के लिए देती है। विकी को उससे प्यार हो जाता है। वह लड़की चंदेरी में पूरे साल में सिर्फ चार दिन के लिए आती है, जब चंदेरी में भव्य चार-दिवसीय पूजा का आयोजन होता है। इन चार दिनों में चंदेरी में एक अजीबोगरीब घटना होती है। एक ‘स्त्री’ वहां के पुरुषों को उठा कर ले जाती है और उनके कपड़े छोड़ जाती है। जहां ‘स्त्री कल आना’ लिखा होता है, वह उस जगह नहीं जाती, इसलिए चंदेरी में लोग सुरक्षा के लिए अपने घरों के आगे ये वाक्य लिखवाते हैं।
स्त्री के बारे में किसी को ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन इसी शहर के एक पुस्तक भंडार के मालिक रुद्र (पंकज त्रिपाठी) का दावा है कि उन्होंने ‘स्त्री’ पर बहुत शोध किया है। वह एक दिन बिट्टू और जना को ‘स्त्री’ से बचे रहने का मंत्र देते हैं, लेकिन अंतिम बात बताने से पहले उनको कहीं जाना पड़ता है। और एक दिन ‘स्त्री’ जना को उठा कर ले जाती है। बिट्टू को शक है कि विकी की प्रेमिका ही ‘स्त्री’ है। विकी और बिट्टू, रुद्र के साथ मिल कर अपने दोस्त जना को ढूंढ़ने में लग जाते हैं। शहर का इतिहास लिखने वाले एक शास्त्री जी (विजय राज) उन्हें ‘स्त्री’ से बचाव का उपाय बताते हैं और फिर तीनों अपनी मुहिम में जुट जाते हैं। इसमें उन्हें साथ मिलता है विकी की प्रेमिका का...
इस हॉरर कॉमेडी में हास्य ज्यादा है और डर कम। ऐसा लगता है कि निर्देशक अमर कौशिक डर वाले तत्त्व को बहुत रखना भी नहीं चाहते थे, क्योंकि उनका मकसद लोगों को डराना नहीं, बल्कि उनका ध्यान खींचना लग रहा है। वह एक मनोरंजक तरीके से ‘स्त्री की बात’ कहना चाहते थे और व्यावसायिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए हॉरर-कॉमेडी विधा उन्हें सुरक्षित लगी होगी। इस फिल्म का सरल-सा संदेश है, जो संवादों और क्लाईमैक्स के जरिये सामने आता है। ‘स्त्री’ के साथ समाज ने ठीक सलूक नहीं किया। उसे जिस प्यार और सम्मान की चाह थी, उसे वह अपने समाज से नहीं मिला, बल्कि प्रताड़ना और दुत्कार मिली। लिहाजा ‘स्त्री’ क्रोधित है और स्त्री जब क्रोधित होती है तो संहारक बन जाती है। समाज को विनाश से बचना है तो उसे स्त्री की कद्र करनी होगी।
निर्देशक अमर कौशिक और लेखक जोड़ी राज निदिमोरू व कृष्णा डी.के. ने अपनी बात कहने में काफी हद तक सफलता पाई है। अमर कौशिक ने फिल्म पर अपनी पकड़ बनाए रखी है और दृश्यों की रचना अच्छी की है। बतौर निर्देशक वह प्रभावित करते हैं। फिल्म पहले दृश्य से रफ्तार पकड़ लेती है। मध्यांतर से पहले इसमें बहुत रोचकता है। कॉमेडी के शानदार पंच हैं। दूसरे हाफ में फिल्म का प्रभाव थोड़ा घटता है, लेकिन यह पटरी से नहीं उतरती। डर वाले दृश्य बहुत ज्यादा नहीं डराते, बस कभी-कभार थोड़ी झुरझुरी-सी पैदा करते हैं। बैकग्राउंड संगीत ठीक है, लेकिन उसको थोड़ा बेहतर किया गया होता तो फिल्म में भूतहा माहौल और उभर कर आता, इससे फिल्म के प्रभाव में थोड़ी वृद्धि होती। फिल्म की पटकथा अच्छी तरह लिखी गई है और संवादों में मजा के साथ जान भी है। निर्देशक और लेखकों ने व्यावसायिकता का पूरा ध्यान रखा है और इस बात की पूरी कोशिश की है कि संदेश के चक्कर में फिल्म सूखी न रह जाए। इसलिए फिल्म में एकाध जगह द्विअर्थी संवाद भी हैं, थोड़ा-सा रोमांस भी है और आइटम सॉन्ग भी। वैसे फिल्म के संगीत में बहुत दम नहीं है। दृश्यों में शहर का पुरानापन झलकता है, हालांकि सेट और बेहतर हो सकते थे।
राजकुमार राव बहुमुखी प्रतिभा वाले कलाकार हैं। किसी भी तरह की भूमिका हो, संजीदा या कॉमेडी, आतंकवादी या सीधे-साधे युवा की, हर भूमिका में उन्होंने खुद को साबित किया है। ‘स्त्री’ में भी अपने किरदार को उन्होंने अपने अभिनय से जानदार बना दिया है। श्रद्धा कपूर अब तक के अपने करियर में एक अलग तरह की भूमिका में हैं और उन्होंने उसे असाधारण तो नहीं, लेकिन ठीक तरीके से जरूर निभाया है। पंकज त्रिपाठी ऐसे अभिनेता हैं कि आप अगर उन्हें सिर्फ एक दृश्य और एक संवाद भी दें तो वे छाप छोड़ जाएंगे। उनकी रेंज भी शानदार है। उनकी संवाद अदायगी किसी भी किरदार को प्रभावी बना देती है। यह फिल्म भी अपवाद नहीं है। अपारशक्ति खुराना का अभिनय भी मजेदार है। इस तरह की भूमिकाओं में वे असर छोड़ते हैं। अभिषेक बनर्जी और अतुल श्रीवास्तव का काम भी अच्छा है। विजय राज सिर्फ एक दृश्य में हैं, लेकिन उसमें भी याद रह जाते हैं।
अपने प्रस्तुतीकरण के कारण ‘स्त्री’ एक देखने लायक फिल्म है। अगर आपको संदेश से बहुत लेना-देना नहीं रहता, तो भी यह फिल्म आपको निराश नहीं करेगी, क्योंकि इसमें मनोरंजन की मात्रा भी अच्छी है।

Monday, September 10, 2018

सबको लगता है इस घर में मौतों का डेरा है

हरपाल को सरकार से किसी भी तरह का मुआवज़ा नहीं मिला है. पति की मौत के बाद अब हरपाल के लिए ज़िंदगी बहुत मुश्किल हो गई है. क़र्ज़, बेटे की पढ़ाई और बेटी की शादी– तीन पहाड़ जैसी मुश्किलें हर रोज़ उनका पीछा करती हैं.
वह कहती हैं, “पशुओं का दूध बेचकर किसी तरह रोटी का इंतज़ाम करती हूं पर बाक़ी सब ठप पड़ा है. पिता की मौत के बाद मेरा बेटा पहली बार परीक्षाओं में फ़ेल हुआ. बेटी की शादी के लिए रिश्ते नहीं मिल रहे हैं. कोई हमारे यहाँ शादी ही नहीं करना चाहता. सबको लगता है इस घर में मौतों का डेरा है. अब तो मुझे भी लगने लगा है कि हमारे घर में ही कुछ ग़लत होगा. अपने रिश्तेदार भी घर आने से कतराते हैं. उनके बिना कहीं आने जाने के लिए भी पड़ोसियों की मोहताज हो गई हूँ. आगे क्या होगा कुछ समझ नहीं आता”.
जिस पंजाब को ज़्यादातर उत्तर भारतीय जनमानस हरित क्रांति, समृद्धि, भांगड़ा और ख़ुशहाल किसानों से जोड़ता हैं, वहां की ज़मीनी सच्चाई आज मुख्तियार जैसे किसानों की कहानियों से भरी पड़ी है.
पंजाब सरकार की ओर से राज्य के तीन विश्वविद्यालयों की मदद से कराए गए पहले आधिकारी ‘डोर-टू-डोर’ सर्वे के मुताबिक़ पंजाब में वर्ष  और  के बीच  , किसानों ने आत्महत्या कर ली.
इन 16,606 किसानों में कुल 87 प्रतिशत मामलों में किसानों ने खेती से जुड़े ख़र्चों के लिए कर्ज़ लिया था और फिर उसे चुका न पाने की वजह से उन्होंने ख़ुदकुशी कर ली.
सरकारी आंकड़ो से बनी पंजाब की यह भयावय तस्वीर अभी पूरी नहीं होती. आगे यह भी जानिए कि अपनी जान ख़ुद लेने वाले इन किसानों में 76 प्रतिशत छोटे किसान हैं जिनके पास 5 एकड़ से भी कम ज़मीनें हैं.
मनसा ज़िले के भीमकालं गांव में हमारी मुलाक़ात एक ऐसे ही खेतिहर मज़दूर परिवार से होती है. इस परिवार की मुखिया हैं 50 वर्षीय बलदेव कौर.
बलदेव यूं तो पढ़ी लिखी नहीं हैं लेकिन पहले पति और फिर जवान बेटे की आत्महत्याओं ने उन्हें कवि बना दिया. उन्होंने अपना दुख पड़ोसियों को गाकर सुनाना शुरू किया और धीरे धीरे अपनों की मौत पर गीत बना लिए. आज उनके गीत ज़िले में किसानों के हक़ के लिए होने वाले विरोध प्रदर्शनों के ‘ऐन्थम सांग’ में बदल गए हैं.
अपनी भारी आवाज़ में सुर लगाकर ‘ख़ुदकुशियों दे राहें जित्ते प्यो दे पुत चले’ (ख़ुदकुशी की राह पर जिसके पति और बच्चे चले) गाती हुई बलदेव उदासी के साथ साथ संघर्ष की भी ज़िंदा तस्वीर लगती हैं.
हम खेतिहर मज़दूर हैं. हमारे पास अपनी कोई ज़मीन नहीं. इसलिए मेरे पति सिर्फ़ 8000 रुपए साल पर ज़मीनदारों के खेत में मज़दूरी किया करते थे. हम पर कर्ज़ा था और क़र्ज़ न उतार पाने की सूरत में मेरे पति ने घर बेच देने का भी क़रार किया हुआ था. हम कर्ज़ चुका नहीं पाए और मेरे पति ने स्प्रे पीकर आत्महत्या कर ली. मरने से पहले वो बहुत छटपटाए थे. फिर मैंने मज़दूरी करके अपने बच्चों को बड़ा किया. हमारे पास घर भी नहीं था. बारिश में मेरी झोपड़ी से पानी टपकने लगता और मैं बच्चों को एक कोने में लिए पड़ी रहती.
मैंने कर्ज़ा उतारने के लिए लोगों के खेतों और घरों में सब जगह काम किया. रोना आता पर गोबर तक साफ़ किया मैंने. लेकिन फिर भी कर्ज़ा न उतरा”.
कर्ज़ उतारने के लिए बलदेव का बेटा कुलविंदर 15 साल की उम्र से ही लेनदार ज़मीनदारों के यहां काम करने लगा.
मज़दूरी करते-करते ही 21 साल की उम्र में उनकी शादी करवा दी गई. उनका पहला बेटा सिर्फ़ 4 महीने का था जब कुलविंदर ने कीटनाशक पी कर ख़ुदकुशी कर ली. बलदेव के परिवार को दो आत्महत्याओं के बाद भी कोई मुआवज़ा नहीं मिला.
गाते गाते बलदेव का गला रुंध जाता है. दुपट्टे से आंसू पोछते हुए वो कहती हैं, “मुझे डर था इसलिए मैंने बेटे को नहीं बताया था कि हम पर कितना कर्ज़ है. पर वो बार-बार पूछता.
कहता माँ सच बता हम पर कितना कर्ज़ा है. फिर एक दिन उसे पता चल गया और उसने कहा कि हम कभी इतना कर्ज़ नहीं चुका पाएँगे. मैं चाहे कितनी भी हिम्मत बँधाती, पर वो अंदर से टूट चुका था.” में पंजाब सरकार ने किसान आत्महत्याओं के लिए एक नई ‘मुआवज़ा और राहत नीति’ को लागू किया. 2001 से पाँचवी बार बदली गयी इस नीति के तहत अब किसान आत्महत्याओं के सभी मामलों में पीड़ित परिवार को 3 लाख रुपए दिए जाने का प्रवधान है.
साथ ही किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं के मद्देनज़र पंजाब सरकार ने दो कमेटियों का गठन किया है. सुखबिंदर सिंह सरकारिया की अध्यक्षता में ग्रामीण आत्महत्याओं के लिए बनी ‘विधान सभा कमेटी’ और टी हक़ की अध्यक्षता में बनी ‘ऋण छूट समिति’. इन कमेटियों ने ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ बढ़ाने से लेकर ‘ऋण छूट’ तक पर किसानों के पक्ष में अपनी सिफ़ारिशें तो दे दीं हैं लेकिन उन पर ज़मीनी कार्रवाई अब तक शुरू नहीं हुई है.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर सुखपाल सिंह लंबे समय से पंजाब में बढ़ते कृषि संकट पर काम कर रहे हैं. वे राज्य सरकार की ओर से कराए गए ‘डोर टू डोर’ सर्वे के समन्वयक भी रहे हैं. बीबीसी से एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि किसानी में चल रही ‘व्यापार की शर्तें’ किसानों के पक्ष में नहीं जा रहीं.
“बीजों से लेकर खाद, पानी और कीटनाशकों तक पर होने वाले ख़र्च बढ़ते जा रहे हैं और किसान की आमदनी उस हिसाब से बढ़ नहीं रही. यह बढ़ते क़र्ज़ और आत्महत्याओं के पीछे एक बड़ी वजह है. हालात ये है कि पहले जहां पंजाब की कुल कामगार जनसंख्या में से 63 प्रतिशत लोग किसानी थे, वहीं आज राज्य के सिर्फ़ 35 प्रतिशत लोग ही खेती कर रहे हैं.इस 35 प्रतिशत में भी सिर्फ़ 20 प्रतिशत किसान हैं, बाक़ी खेतिहर मज़दूर”.
आगे बरनाला ज़िले के ही बदरा गांव में हमारी मुलाक़ात गुरतेज दास से होती है. 45 वर्षीय गुरतेज के घर में कोई महिला नहीं हैं.
गांव की मुख्य सड़क पर बने एक बदरंग धूल भरे घर में रहने वाले इस हिंदू किसान परिवार के पास सिर्फ़ एक एकड़ ज़मीन है. एक दशक पहले यह परिवार ज़मीन किराए पर लेकर खेती करता था. लेकिन जिस दिन गुरतेज के बड़े भाई निर्मल दास ने क़र्ज़ के कारण आत्महत्या की, उसी दिन यह परिवार बिखर गया.
गुरतेज ने अपना जीवन बड़े भाई के बच्चों को पाल पोस कर बड़ा करने में लगा दिया. निर्मल के जाने के बाद गांव वालों ने बच्चों की माँ और बड़े भाई की पत्नी सरबजीत कौर से उनका विवाह भी करवा दिया था.
पर सरबजीत उनको और अपने बच्चों को छोड़ कर चली गईं. बिन माँ के बच्चों को बड़ा करना गुरतेज के लिए एक ऐसी चुनौती थी जिसका सामना करने के लिए न तो वह मानसिक तौर पर तैयार थे और न ही आर्थिक.
अपनी धूल भरी रसोई में चाय बानते हुए वह कहते हैं, “जब बच्चों की माँ गई तब छोटा वाला सिर्फ़ 6 साल का था. रातों को उठकर रोता था. अक्सर बीमार पड़ जाता. मुझसे जैसे बनता मैं वैसे खाना बनाकर बच्चों को खिलाता और उनकी देखभाल करता. उनको नहलाता, कपड़े पहनाता और सारे काम करता. फिर मज़दूरी करने जाता और वापस आकर उन्हें खाना बनाकर खिलाता.”

Tuesday, September 4, 2018

采访姜克隽:缩小碳排量差距

在德班联合国气候变化会议上,讨论最久的话题之一,就是哥本哈根会议的减排承诺与为限制全球气温上升两摄氏度的目标之间的巨大减排缺口。
 
为促成谈判,联合国环境规划署( )发布了一份名为“消除减排缺口”的报告,报告指出,即使各国全面落实哥本哈根会议确定的减排承诺,世界也只有半成把握实现全球升温不超过两摄氏度的减排目标。但好消息是,我们现在有技术和财政能力来达到目标,以避免温度升高。 
 
我们有幸与中国能源究所研究员、联合国环境规划报告执笔人之一的姜克隽先生交流,请他谈谈中国能源研究所的相关分析,以及中国在德班会议上能为消除碳排放缺口做出什么样的努力。
 
问:联合国环境规划署的报告中指出,如果排放缺口被消除,全球温室气体排放量将在2020年达到峰值。你认为各国如何能同意这一点?中国何时会达到峰值? 
 
姜克隽:全世界碳排量在2020年前达到峰值是非常必要的。我们假设中国2025年排放量达到峰值,那么发达国家2025年之前减排量需要骤减。这样就有可能控制全球平均升温少于2度。在2015年前观察到全球排放峰值不大可能。对于中国来说,排放量预计在2030年左右达到峰值。但是,如果我们看到中国目前清洁技术的快速发展,未来3-4年有可能看到中国的巨大变化,以帮助消除排放缺口。
 
问:中国在哥本哈根会议承诺的碳排放浓度削减40-45%是否有助于消除排放缺口?
 
姜克隽:事实上中国的第十二个五年计划就是根据45%的碳排放强度消减目标来制定的。我们通过了很多提高能源效率和使用非化石燃料的政策和行动计划。如果这些工作顺利进行,中国绝对可以超额完成目标。
 
问:在大会中,技术转让依然是一个热点问题。中国是否将通过推动技术转让来帮助消除排放缺口?
 
姜克隽:许多来华资金是为了寻找你说的这种投资机会,但是目前国内的投资已经饱和,他们现在寻找更多的海外投资。投资清洁技术是个不错的选择,因为中国拥有可降低风能和太阳能发电的成本的具有市场竞争力的技术。这就是我们要传达给德班会议的:这不仅仅是减排量的竞争,也是各国未来在清洁技术领域的竞争。
 
未来中的国资金是很充裕的,就像我刚才说的,中国不是真的需要清洁发展机制的资金,这只是国内生产总值中很小很小的一部分。中国需要的是高端清洁生产技术。
 
问:你觉得德班会议能够实现什么内容?
 
姜克隽:这就是我对我们这些COP17与会观察员的建议。首先,我们希望给谈判留下更多空间。哥本哈根会议主题是争论,坎昆会议主题是向前看,德班会议是一个工作会议,各国并没有真正想打败对方,而是想完成从哥本哈根到坎昆之后的“功课”。
 
此外,参与德班会议的国家需要确定一些技术细节。例如,欧盟希望此时能够推动“路线图”计划,而像中国这样的国家都持观望态度。如果德班会议再次失败,那么各国会开始怀疑联合国的能力。
 
我们还要说,中国当前的发展速度非常快,谈判需要与时俱进。譬如,中国在哥本哈根会议时也希望提出需要经济支持的提案,但这次,这对中国来说不是太大的问题。
 
问: “京都议定书”将于明年到期,如果各方未能就第二承诺期之前达成协议,你觉得中国的反应会是什么?
 
姜克隽:我觉得“京都议定书未能达成协定”的结局将是难以想象的。没有达到京都议定书最差程度的协定,这将造成一场很难收场的后果。理想的情况下,我们应该有一个修订版本的京都议定书,也就是既考虑77国集团的利益,也符合中国和发达国家的需要。中国也可以在一些问题上商议妥协。
 
问:如果新协议只到2020年,你是否认为它为时已晚?
 
姜克隽:当然太晚了。所以需要一些国家对其2020年排放目标尽其可能做出新的调整。因此,我认为各国应该开始2025年和2030年目标的制订工作。如果这些目标非常明确,那么我们就可以放松对2020年的减排目标的过度重视。
 
徐安琪,耶鲁大学森林与环境研究学院的博士生;宋冉,耶鲁大学森林与环境研究学院工程管理硕士;乔纳森•史密斯,耶鲁大学法学院法学工学博士、林业学院和环境研究学院博士。他们都在出席了德班COP17会议。